इस्लाम को नई दिशा पर ले जाने का एक और अवसर

दैनिक जागरण, नई दिल्‍ली, 05, February, 2018

दुनिया में मजहबी स्वतंत्रता, शांति और सह-अस्तित्व के साथ ही इस्लाम को लेकर उठ रहे सवालों को समाप्त करने के लिए अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में पांच से सात फरवरी तक एक ऐतिहासिक सम्मेलन का आवोजन किवा जा रहा है। इस सम्मेलन में इस्लामिक दुनिया के तमाम ख्याति प्राप्त विचारकों, धर्म गुरुओं के साथ ही कुछ अन्य धर्मों के विद्वान भी भाग लेंगे। इसका आयोजन संयुक्त अरब अमीरात स्थित एक संगठन फोरम फॉर प्रमोटिंग पीस इन मुस्लिम सोसाइटो कर रहा है। संगठन के संरक्षक अबू धाबी के क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान और उनके भाई व संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्री अब्दुल्लाह बिन जायद अल नाहयान हैं, जबकि इस्लामिक दुनिया के प्रसिद्ध विद्वान शेख अब्दुल्लाह बिन बय्याह इसके अध्यक्ष हैं। सम्मेलन में निकले निष्कर्षों को “वाशिंगटन घोषणापत्र” के नाम से जाना जाएगा। इसमें संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। भारत की तरफ से इस कार्यक्रम में इस्लामिक मामलों के विशेषज्ञ और लेखक रामिश सिद्दीकी हिस्सा ले रहे हैं।

करीब दो साल पहले मुस्लिम बहुल देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर ऐतिहासिक मोरक्कों घोषणापत्र जारी किया गया था। इस पर साठ से अधिक मुस्लिम और अरब दुनिया के देशों के 350 से अधिक मुस्लिम विद्वानों एवं नेताओं ने दस्तखत किए थे।यह घोषणापत्र मदीना चार्टर से प्रेरित है। बता दें कि पैगंबर मुहम्मद साहब ने मदीना के सभी निवासियों के लिए समान और न्यायसंगत अधिकार और जिम्मेदारियां तय की थीं। इसे ही मदीना चार्टर कहा जाता है। इसके तहत अलग-अलग धार्मिक मान्यता और समुदाय के लोगों को सम्मान के साथ रहने के भी अधिकार दिए गए थे। वाशिंगटन में होने जा रहे सम्मेलन में नई चुनौतियों के साथ इस पर भी चर्चा की जाएगी कि मोरक्को में जो कुछ तय किया गया था उसमें कितना आगे बढ़ा गया है ?

वाशिंगटन में दुनिया भर के इस्लामिक विचारक मजहबी आजादी और सुधार पर करेंगे मंथन, पांच से सात फरवरी तक होगा ऐतिहासिक सम्मेलन

सम्मेलन में विचार के लिए इन तीन बिंदुओं पर विशेष जोर होगा

| एक: स्पष्ट रूप से और सख्ती से इस बात की घोषणा की जाए कि धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न इस्लाम के मूल्यों और उसूलों के खिलाफ है। अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए जिन धार्मिक उपदेशों को लेकर विकृतियां फैली हैं उनकी जांच पड़ताल जरूरी है, जबकि धार्मिक उपदेशों का मकसद जीवन और अधिकारोँ की रक्षा करना है जिसमें धर्म की स्वतंत्रता भी शामिल है। चरमपंथी समूह सामान्य तौर पर दूसरे धार्मिक समूहों के खिलाफ अपनी हिंसा को जायज़ ठहराने के लिए धार्मिक उपदेशों को तोड़-मड़ोकर पेश करते हैं।  

| दो : सह-अस्तित्व को धार्मिक और बौद्धिक आधार पर स्थापित करना होगा। सह- अस्तित्व के प्रति प्रतिबद्धता सीधे धार्मिक नेताओं की जिम्मेदारी से जुड़ी हुई है। आपसी सम्मान और सह- अस्तित्व के मूल्वों के लिए संबंधित धर्मग्रंथों और परंपराओं की खोज की जानी चाहिए ताकि हिंसा का बहिष्कार किया जा सके।

| तीन: व्यावहारिक कदमों के साथ ही विचार की नैतिक और दार्शनिक जमीन तैयार करने के लिए क्या दुनिया भर के विभिन्‍न धार्मिक मान्यता के नेताओं को वैश्विक तौर पर एक गठबंधन के गठन के लिए राजी किया जा सकता है ? यह गठबंधन दुनिया में अच्छे कामों को बढ़ावा दे सकता है। अगर सब लोगों ने मिलकर अच्छाई के लिए काम नहीं किया तो आने वाली पीढ़िवों के लिए खतरे बढ़ जाएंगे जिसका नतीजा होगा कि दुनिया में संघर्ष, गरीबी, असमानता, पर्यावरण को नुक़सान का दायरा और सामाजिक व जातीय विभाजन बढ़ेगा। साथ ही शांतिपूर्ण प्रतिबद्धता के लिए संयुक्त धार्मिक गठबंधन बनाने को प्रेरित करती हैं।