एक राष्ट्रवादी विचारक का जाना
बीते बुधवार को दुनिया ने एक प्रख्यात विचारक खो दिया। पद्म विभूषण मौलाना वहीदुददीन खान एक ऐसे विद्वान थे जिन्होंने शांति के सिद्धांतों को आगे रखने में अपना जीवन समर्पित किया था। शांति के लिए उनकी अडिग प्रतिबद्धता उनके एक अंतर्निहित विश्वास पर आधारित थी कि “शांति के लिए सबकुछ त्यागा जा सकता है, लेकिन शांति को नहीं त्यागा जा सकता।’ वे जहां भी गए वहां इसी बात पर प्रकाश डाला कि शांति की समाज में कितनी बड़ी भूमिका है। अपने जीवन के नौ दशकों तक उन्होंने भारत और विदेशों में अपनी इस बात को फैलाने के लिए हर उपलब्ध अवसर का उपयोग किया। जो लोग उनसे उनके नई दिल्ली स्थित आवास में मिलने आते, वे उनकी अत्यंत सादगी भरी जीवन शैली से आश्चर्यचकित रहते थे। वे रोज सुबह अपने घर के बरामदे में बैठ कर देर तक प्रकृति की भव्यता को देख उससे प्रेरणा प्राप्त करते थे।
अक्सर अपने संबोधन में वे ‘गाय’ पर एक कविता सुनाते थे जिसे उन्होंने अपनी स्कूल की पुस्तक में पढ़ा था। उनका कहना था कि गाय हमारे लिए अनुकरण योग्य एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करती है। वह कभी नहीं पूछती, बल्कि हमेशा देती है, स्वयं घास खा कर समाज को दूध देती है। इसी तरह समाज का एक सफल सदस्य वह है, जिसके सामने जब घास जैसी परिस्थिति आए तो वह उसे दूध जैसी चीज में बदलने की क्षमता रखे।
उनके पास सत्य के लिए खड़ा होने, गलत की आलोचना करने और हर परिस्थिति से आशा और सकारात्मकता निकालने का सामर्थ्य था।

एक बार जब मैं छोटा था तो उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं सफलता का सूत्र जानना चाहूंगा? मैंने उत्सुकता से हां में उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि मैं तुम्हें एक तीन सूत्रीय फार्मूला देता हूं, पहला शिक्षा, टूसरा शिक्षा और तीसरा भी शिक्षा। उनके अनुसार शिक्षा ही राष्ट्र निर्माण की नींव है। शिक्षा प्राप्त करना भौतिक दुनिया में एक दूसरे से आगे निकलने का साधन नहीं है, बल्कि यह अपने चरित्र को मजबूत करने और समाज का एक जिम्मेदार सदस्य बनने का साधन है।
मौलाना के परिवार ने भारत की स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। इस कारण बचपन में ही राष्ट्रवादी विचार उनमें आत्मसात हो गए। उन्होंने इस्लाम के मूल ग्रंथों कुरान और हदीस से मार्गदर्शन और प्रेरणा ली और इसकी सही व्याख्या को समाज के सामने रखने में अपना जीवन लगाया।
उनके पास सत्य के लिए खड़ा होने, गलत की आलोचना करने और हर परिस्थिति से आशा और सकारात्मकता निकालने का सामर्थ्य था। उनके विचारों का केंद्र व्यक्ति के अंदर के अध्यात्म को ‘जगाना, समाज में शांति स्थापित करना और धार्मिक शिक्षाओं की सही व्याख्या करना था। उनके प्रयासों ने हजारों युवाओं के मन को बदला जो एक समय में हिंसक विचारों में फंसे हुए थे। उनका मानना था कि समाज में विचारों की स्वतंत्रता होनी चाहिए, ताकि रचनात्मक विचारों के निर्बाध प्रवाह को बनाए रखा जा सके। मौलाना के जाने से दुनिया भर में उनको मानने वाले अनेकों लोग, जो उन्हें एक मार्गदर्शक और एक संरक्षक के रूप में देखते थे, एक खालीपन महसूस कर रहे हैं।