प्रेम और सद्भाव का पर्व
इस्लामिक कैलेंडर के 10वें महीने शव्वाल के पहले दिन ईद उल फित्र मनायी जाती है। ईद उल-फित्र का शाब्दिक अर्थ है, ‘उपवास तोडऩे का पर्व’। रमजान के रोजे व्यक्ति को संयम-आधारित जीवन शैली के लिए प्रेरित करते हैं। इसके बाद ईद का पर्व जीवन में एक नई शुरुआत का दिन होता है। ईद के दिन की शुरुआत परिवार व मित्रों के साथ मस्जिद या ईदगाह में जाकर ईद की सामूहिक नमाज़ अदा करने से होती है। इसके बाद सभी लोग अपने रिश्तेदारों, दोस्तों व पड़ोसियों से मिलते हैं या उन्हें अपने यहां भोजन पर आमंत्रित करते हैं। ईद का यह सामाजिक स्वरूप इस्लाम में सामाजिक एकजुटता के महत्व पर जोर देता है।
लेकिन ईद का अर्थ मात्र आनंद उठाने का दिन नहीं, यह एक ऐसा दिन है, जब रोज़े रखने वाला व्यक्ति स्वयं से यह वादा करता है कि जिस तरह उसने रमजान के महीने में संयम आधारित जीवन जिया है, ऐसा संयम वह पूरे साल रखने का निरंतर प्रयास करेगा। जिस तरह रमजान में उसने अपनी भूख और प्यास की चिंता की, ठीक उसी तरह वह अपने आसपास के ज़रूरतमंदों की मदद करने की भी पूरी कोशिश करेगा।

ईद के त्योहार की इसी प्रकृति के कारण विश्वभर में मुस्लिम समुदाय के लोग अपने-अपने स्थानों पर ईद मिलन जैसे कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं और समाज के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के लोगों को आमंत्रित करते हैं।
ईद उल-फित्र उन लोगों को याद करने का भी नाम है, जो जीवन की मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। इसलिए ईद की नमाज़ पढऩे वाले प्रत्येक व्यक्ति पर ईद की नमाज़ अदा करने से पहले ज़कात उल-फित्र नामक एक विशेष राशि ऐसे वर्ग में दान देना अनिवार्य है। एक हदीस के अनुसार, पैगंबर साहब ने रोजा रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए जकात-उल-फि़त्र को अनिवार्य कर दिया, ताकि वह सबको अपनी ख़ुशी में शरीक कर सके। जकात-उल-फित्र सामाजिक संतुलन को बनाए रखने में एक बड़ा योगदान है, जहां एक आर्थिक रूप से सशक्त व्यक्ति किसी जरूरतमंद की सहायता कर पाता है। इस्लाम में जकात यानी दान एक ऐसा नियम है, जो प्रत्येक व्यक्ति पर उसी तरह अनिवार्य है, जैसे रोजा रखना। जकात वह प्रथा है, जहां एक मुस्लिम अपनी संपत्ति से एक निश्चित प्रतिशत राशि दान में देता है।
जकात उल-फि़त्र रमज़ान के रोज़े को पूरा करती है। यह प्रत्येक मुस्लिम के लिए आवश्यक है। जिस किसी के पास एक दिन और रात के लिए आवश्यक से अधिक है, उस पर जकात-उल-फित्र अनिवार्य है। इसे जितनी जल्दी वितरित कर दिया जाए उतना अच्छा होता है, ताकि जिन्हें दिया जा रहा है वे भी ईद के पर्व में भाग ले सकें। ईद-उल-फित्र की यह विशेष प्रक्रिया हमें याद दिलाती है कि सच्ची ख़ुशी बांट कर मिलती है। इस तरह से मनायी जाने वाली ईद लोगों में प्यार और सद्भाव को बल देती है।