Islam & Spirituality
- Whoever believes in God and the Last Day, let him speak well
or keep quiet -
Prophet Muhammad ﷺ
Festival is a reflection of the transformation achieved during Ramadan
Month of fasting fosters discipline, compassion, and communal strength
The Prophet’s model of pluralism and religious freedom offers valuable insights for modern societies grappling with issues of religious intolerance and extremism
स्वयं को टकराव और नकारात्मकता के केंद्र से हटा लेना ही हज़रत इमाम हुसैन के जीवन का सबसे बड़ा संदेश है।
The practice of contemplation in seclusion, known as I’tikaf, is present in various religions. It may take different forms, but its essence is universal.
Eid is a social occasion to cherish, promoting peace, charity, and togetherness worldwide
Hajj is a spiritual journey towards God-Realisation. In other words, it signifies the nearest one can get to God in this life.
ईद के त्योहार की इसी प्रकृति के कारण विश्वभर में मुस्लिम समुदाय के लोग अपने-अपने स्थानों पर ईद मिलन जैसे कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं और समाज के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के लोगों को आमंत्रित करते हैं।
According to Islamic teachings, man must acknowledge his Creator and engage in developing his spiritual core. And the Night of Destiny, or Laylat al-Qadr, is its pinnacle through which a believer attempts to reorient his life in a God-oriented manner.
इस्लाम में रमजान एक विशेष और पवित्र महीना है, इस महीने को संयम और इबादत का महीना बताया गया है।
Hijrah is not an ordinary event in the history of Islam. It presented a model of patience and avoidance of conflict, even at the cost of migrating from the birth place.
According to the Islamic tradition, the various practices of Haj aim at giving men and women the lesson of surrendering before God and creating an awareness of the Day of Judgment.
ईद-उल-फ़ित्र का नाम ‘फ़ित्रा’ शब्द से लिया गया है। फ़ित्रा, ईद की नमाज पढ़ने से पहले जरूरतमंदों को दान में दी जाने वाली अनिवार्य राशि है।
इस्लामिक कैलेंडर में रमजान का महीना रोजे का महीना होता है और उसके बाद का महीना शव्वाल का महीना। जिसके पहले दिन को ईद का दिन ठहराया गया है।
दरअसल ईद-उल-अजहा का ऐतिहासिक परिपेक्ष्य यह है कि हजरत इब्राहिम ने एक स्वप्न देखा था कि वो अपने बेटे की कुर्बानी दे रहे हैं। हजरत इब्राहिम खुदा में पूर्ण विश्वास रखते थे, उनको इस स्वप्न से लगा कि यह खुदा की तरफ से संदेश है।
इस साल एक अलग रमज़ान था, ऐसे ही इस बार की ईद भी अद्वितीय होगी। कई क़िस्से इतिहास में हैं, जब किसी कारण लोगों को ईद की नमाज़ घर पर ही अदा करनी पड़ी।
यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है की रमज़ान में खाने-पीने से परहेज़ का अर्थ केवल प्रतीकात्मक होता है। यह रोज़े का एकमात्र उद्देश्य नहीं है।
वास्तव में रमज़ान उस आध्यात्मिक अनुभव का नाम है जिससे इंसान समग्र दृष्टिकोण हासिल कर पाता है। कोरोना के इस मुश्किल वक्त में हर इंसान को चाहिए की वह सकरात्मक रहकर रोज़े के वास्तविक भाव को जागृत करने का पूर्ण प्रयास करे….
इस्लामिक कैलेंडर के आठवें महीने को ‘शाबान’ के नाम से जाना जाता है। शाबान महीने के मध्य की 14वीं तारीख़ की शाम से 15वीं की शाम तक के समय को भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले मुसलमान शब-ए-बरात के नाम से मनाते हैं।
पैगंबर मुहम्मद साहब से एक बार उनके एक साथी ने पूछा, ‘ए खुदा के नबी कुर्बानी क्या है?’ इस पर पैगंबर साहब ने उत्तर दिया: ‘यह आपके पूर्वज, पैगंबर इब्राहिम की परंपरा है।’
रोजे रखने से व्यक्ति के अंदर जो उत्कृष्ट गुण पैदा होते हैं, उसका परिणाम यह होता है कि वह ना सिर्फ अपने लिए बल्कि समाज के लिए भी पहले से बेहतर व्यक्ति बनने के प्रयास में जुट जाता है।
इसी तरह ब्रिटिश इतिहासकार थॉमस कार्लाइल ने हजरत मोहम्मद साहब को हीरो बताया। कुरान के अनुसार, वह समस्त मानव जाति के लिए एक आदर्श व्यक्ति थे।
यह जानना बहुत जरूरी है कि हज और उसके साथ जुड़ी हुई पद्धति इब्राहिम और उनके परिवार द्वारा किए गए कार्यों को प्रतीकात्मक तौर पर दोहराने का नाम है।