दुआ करें हो सबकी मीठी ईद

ईद-उल-फितर इस्लामिक कैलेंडर के दसवें माह शव्वाल की पहली तारीख को मनाई जाती है। जब इस्लाम के पैगंबर शव्वाल महीने का चांद देखते थे, तो वे खुदा से दुआ करते थे, ‘ए खुदा, इस चांद को हमारे लिए अमन का चांद बना दे।’ पैगंबर साहब की यह दुआ ईद की सच्ची भावना को व्यक्त करती है जो लोगों में आध्यात्मिक मूल्यों को बढ़ावा देने और समाज में एक शांतिपूर्ण वातावरण बनाने के लिए है।

इस साल अनेक लोग ‘ईद की नमाज कैसे अदा करें 2’ सवाल को लेकर परेशान हैं। ईद की नमाज़ जुमे की नमाज़ (शुक्रवार की नमाज़ ) की तरह नहीं है जहां आपको नमाज़ अदा करने के लिए न्यूनतम संख्या में लोगों की आवश्यकता होती है। ईद की नमाज़ में हालात अलग होते हैं। अतीत में ऐसे कई उदाहरण हैं जब ईद की नमाज़ लोगों ने अलग-अलग प्रकार से अदा की। जैसे पैगंबर साहब के सबसे करीबी साथी अनस इब्न मलिक के जीवन से एक उदाहरण मिलता है। एक बार जब वे ईद की सामूहिक नमाज अदा नहीं कर पाए तो उन्होंने अपने घर के सभी सदस्यों को इकट्ठा किया और उनके साथ घर पर ईद की नमाज़ पढ़ी। ऐसे कई किस्से इतिहास में मिलते हैं, जब किसी कारणवश लोगों को ईद की नमाज़ घर पर ही अदा करनी पड़ी।

ईद की नमाज़ में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है खुतबा। खुतबा यानि धर्मविषयक व्याख्यान, जो मस्जिदों में ईद की नमाज़ के बाद दिया जाता है। ईद की नमाज़ खुतबे के बाद मुकम्मल मानी जाती है। जैसे जुमे की नमाज़ पर दिया जाने वाला खुतबा अनिवार्य है, ईद की नमाज़ का खुतबा अनिवार्य नहीं है। इसलिए हमें इस बार खुतबे की चिंता करने की जरूरत नहीं है बस अपने घरों में ईद की नमाज़ अदा करने की जरूरत है।

इस साल अलग रमज़ान था, ऐसे ही इस बार की ईद भी अद्वितीय होगी। कई किस्से  इतिहास में हैं, जब किसी कारण लोगों को ईद  की नमाज़ घर पर ही अदा करनी पड़ी। आज बस यह महत्वपूर्ण है कि हम परिवार के साथ मिलकर समस्त मानवता के लिए दुआ करें…

ईद-उल-फितर का नाम ‘फितरा’ शब्द से लिया गया है। फितरा ईद की नमाज़ पढ़ने से पहले जरूरतमंदों को दान में दी जाने वाली अनिवार्य राशि है। ईद की नमाज़ अदा करने से पहले हर परिवार के मुखिया को अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए एक तय राशि निकालकर जरूरतमंदों को देनी अनिवार्य होती है। नमाज़ की दो रकात के अतिरिक्त ईद-उल-फितर के लिए और कोई निर्धारित अनुष्ठान नहीं है।

हम सभी जानते हैं कि इस साल एक अलग रमज़ान था, ऐसे ही इस बार की ईद भी अद्वितीय होगी। आज तक ईद हमारे लिए एक ऐसा दिन बन गया था जिसमें हम अच्छे से अच्छे कपड़े और लजीज खान-पान पर अपना समय और पैसा खर्च करते थे। दोस्तों-रिश्तेदारों से मेल-मुलाकात करते थे लेकिन इस ईद में यह सब संभव नहीं। यहां मैं पैगंबर साहब के जीवन का एक अन्य किस्सा साझा करूंगा। एक बार उनके सबसे करीबी साथी उमर बाजार से रेशम का कपड़ा लेकर आए और उसे पैगंबर साहब के पास ले गए और उनसे अनुरोध किया कि वे इसे ईद के दौरान पहनें। पैगंबर मुहम्मद ने उस कपड़े को स्वीकार नहीं किया क्योंकि उन्हें अपना जीवन न्यूनतम चीजों के साथ व्यतीत करना पसंद था। वे व्ययशील जीवनशैली के कभी समर्थक नहीं रहे।

इस्लाम के पैगंबर ने एक बार कहा था कि उपहारों का आदान-प्रदान समाज में प्रेम को बढ़ावा देता है इसलिए, मिठाइयां केवल मिठाई नहीं हैं- उनका एक अन्य अर्थ भी है। मिठाई न केवल ईद के त्योहार की भावना का प्रतिनिधित्व करती है, बल्कि इस्लाम की सच्ची भावना का भी प्रतिनिधित्व करती है। इस साल हम एक-दूसरों के घरों में नहीं जा सकते हैं और न ही किसी को अपने घरों में आने के लिए कह सकते हैं। तो इस बार सबसे बड़ी चीज जो हम एक-दूसरे को उपहार में दे सकते हैं वह है हमारी दुआ। ईद के दिन जब हम सभी अपने परिवार के साथ ईद की नमाज़ अदा करें, तो यह महत्वपूर्ण है कि हम समस्त मानवता के लिए दुआ करें और जो इस महामारी, भूख और गरीबी के कारण पीढ़ित हैं, उनके लिए विशेष रूप से दुआ करें।