खुद को बदनाम करने वाला काम: बेंगलुरु में हिंसा करने वाले लोग पैगंबर साहब के दिखाए मार्ग पर चल रहे हैं?
चंद रोज पहले बेंगलुरु की सड़कों पर भीड़ और पुलिस के बीच हिंसक झड़पें हुईं। भीड़ ने कांग्रेस के एक विधायक के घर में तोड़फोड़-आगजनी की और इलाके में कई वाहनों और एटीएम को तोड़ने के साथ-साथ पुलिस थाने पर पथराव किया। इसमें कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। हिंसक भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस को गोली चलानी पड़ी। गोलीबारी में तीन लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए।
सोशल मीडिया पर मुहम्मद साहब पर लिखी गई आपत्तिजनक पोस्ट हिंसा की वजह बनी
सोशल मीडिया पर हजरत मुहम्मद साहब के ऊपर लिखी गई एक आपत्तिजनक पोस्ट इस हिंसा की वजह बनी, जो कांग्रेस के दलित विधायक के रिश्तेदार ने की थी। यह पहली बार नहीं है जब ऐसे मामलों में मुस्लिम समाज की इस तरह की उग्र्र प्रतिक्रिया देखने को मिली हो। न केवल भारत में, बल्कि विश्व भर में मुस्लिम समाज की ऐसी हिंसक प्रतिक्रिया देखने को मिलती रही है। चाहे वह डेनिश अखबार के कार्टून का मामला हो या सलमान तासीर का या सलमान रुश्दी का। कई वर्षों से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह बात उठती रही है कि क्या ईशनिंदा से जुड़ा कोई मामला कठोर दंड का हकदार है या फिर निजी स्वतंत्रता के दुरुपयोग का? दुनियाभर में लोग जानना चाहते हैं कि कुरान और हदीस ऐसे हालात में अपने अनुयायियों से क्या उम्मीद करते हैं? क्या हिंसक जवाब ही इसका उत्तर है?
इस्लाम में ईशनिंदा स्वतंत्रता के दुरुपयोग का मामला है
इस संबंध में इस्लाम का दृष्टिकोण बहुत स्पष्ट है। इस्लाम की शिक्षाओं के अनुसार खुदा ने प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रता के साथ पैदा किया है। इस स्वतंत्रता का उपयोग या दुरुपयोग व्यक्ति पर खुद निर्भर करता है। अगर इस्लाम को मानने वाले लोग किसी दूसरे इंसान की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाना चाहते हैं तो वे सीधे-सीधे खुदा की दी हुई देन के खिलाफ काम करते हैं। इस्लाम में ईशनिंदा स्वतंत्रता के दुरुपयोग का मामला है। यह कोई संज्ञेय अपराध नहीं।

जीवन में कुछ भी हासिल करने का रास्ता हिंसक मार्ग से होकर नहीं जाता। कुरान में प्रत्येक परिस्थिति में टकराव से बचने वाले शांति के मार्ग का अनुसरण करने को कहा गया है।
ईशनिंदा करने वाले व्यक्ति को नजरअंदाज किया जाए
इस्लाम के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति ईशनिंदा करता पाया जाए तो बेहतर है कि उसे नजरअंदाज किया जाए या फिर मुमकिन हो तो उससे सही जानकारी साझा की जाए। पैगंबर मुहम्मद की जीवनी से संबंधित सीरह की किताबों में इसका पर्याप्त वर्णन है कि जब भी पैगंबर साहब को उनके विरोधियों से प्रतिकूल और नकारात्मक आलोचना मिलती तो वह उन्हें अनदेखा कर देते और ऐसे व्यक्ति से बेहतर सुलूक करने की शिक्षा अपने साथियों को देते।
शारीरिक कष्ट सहने के बावजूद पैगंबर साहब और उनके साथी हिंसक प्रतिक्रिया में संलग्न नहीं रहे
हजरत मुहम्मद साहब जब मक्का में थे तब उनका और उनके अनुयायियों का विरोध चरम सीमा पर पहुंच चुका था। न सिर्फ अपशब्द, बल्कि हर प्रकार के शारीरिक कष्ट सहने के बावजूद पैगंबर साहब और उनके साथी किसी तरह के प्रतिशोध या हिंसक प्रतिक्रिया में संलग्न नहीं रहे। जब मक्का में रहने के हालात पूरी तरह असहनीय हो गए तो मुहम्मद साहब और उनके साथी वहां से मदीना चले गए। मक्का में एक महिला रहती थी, जिसका नाम अरवा बिंत हरब था। उसे जब भी अवसर मिलता तो वह हजरत मुहम्मद साहब के पीछे जाती और उन्हें ‘मुधम्मम’ कहकर अपमानित करती। मुधम्मम का अर्थ मुहम्मद शब्द के ठीक विपरीत होता है। जहां मुहम्मद का शाब्दिक अर्थ होता है प्रशंसनीय, वहीं मुधम्मम शब्द का अर्थ है निंदनीय। जब पैगंबर साहब के साथी उसे ऐसा कहते सुनते तो वे अत्यंत क्रोधित हो जाते। इस पर पैगंबर साहब अपने साथियों से कहते कि तुम बुरा मत मानो, क्योंकि वह किसी मुधम्मम का अपमान कर रही है और मेरा नाम तो मुहम्मद है- अल-बुखारी, 334)।
इस्लाम के अनुयायियों को शांतिपूर्ण, गैर-प्रतिक्रियावादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए
पैगंबर साहब ने हमेशा इसी तरह उत्तेजक स्थिति को शांत किया और यही उदाहरण वह सबके लिए छोड़ गए। कुरान में एक जगह आता है कि खुदा के पैगंबर में तुम्हारे लिए एक अच्छा उदाहरण है (33:21)। इसका अर्थ है कि इस्लाम के अनुयायियों को शांतिपूर्ण, गैर-प्रतिक्रियावादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। जो लोग हिंसक मानसिकता अपनाते हैं और हिंसक गतिविधियों में स्वयं को संलग्न करते हैं उनसे सवाल है कि क्या हिंसा को अपनाकर वे सही मायने में पैगंबर साहब की शिक्षाओं का पालन कर रहे हैं? क्या पैगंबर साहब की शिक्षाओं के विपरीत जाकर वह खुद के मुसलमान होने का दावा कर सकते हैं? बेंगलुरु जैसी हिंसा से उन्हें बदनामी के सिवा और क्या मिलेगा?
जीवन में कुछ भी हासिल करने का रास्ता हिंसक मार्ग से होकर नहीं जाता
जीवन में कुछ भी हासिल करने का रास्ता हिंसक मार्ग से होकर नहीं जाता। कुरान में प्रत्येक परिस्थिति में टकराव से बचने वाले शांति के मार्ग का अनुसरण करने को कहा गया है। किसी भी समाज की तरक्की द्वेष और अस्थिरता के माहौल में हो पाना असंभव है। जब इस्लाम के पैगंबर ने किसी भी उकसावे में प्रतिशोध की नीति नहीं अपनाई तो फिर इस्लाम के अनुयायियों यानी मुसलमानों को भी इसी रास्ते पर चलना चाहिए। विचारों की अभिव्यक्ति का हिंसक उत्तर इस्लाम के मूल्यों के विपरीत है। कुरान यही कहती है कि यदि आप किसी व्यक्ति की गलतफहमी को दूर करना चाहते हैं तो आप उसे शांतिपूर्ण ढंग से जवाब दे सकते हैं, लेकिन अभद्र भाषा र्या ंहसा का इस्तेमाल कर कभी भी अपने दृष्टिकोण को सामने वाले के आगे नहीं रख सकते। समाज में शांति और सद्भाव को बाधित करने वाली किसी भी चीज को रोकना समाज के नेतृत्व का काम है।
पैगंबर साहब के समय में अरब एक विषम भूभाग था
पैगंबर साहब के समय में अरब एक विषम भूभाग था। न केवल भौगोलिक रूप से, बल्कि पैगंबर और उनके साथियों ने जिस तरह का विरोध सहा उस कारण से भी, लेकिन ये दोनों ही कारण पैगंबर साहब को क्षमा और करुणा की सीख देने से नहीं रोक पाए। उन्होंने कभी किसी प्रकार के विरोध के खिलाफ आक्रोश के रास्ते को नहीं चुना। आज मुस्लिम समाज को भी पैगंबर साहब की धैर्य की सीख को आत्मसात करने की आवश्यकता है। इस आवश्यकता की पूर्ति हो, इसे मुस्लिम समाज को सुनिश्चित करना चाहिए।