संयम के परीक्षण का दिन
रमजान के बाद शव्वाल के महीने के पहले दिन ईद होती है। रमजान का महीना जहां तैयारी और आत्मविश्लेषण का होता है, वहीं ईद का दिन नये प्रण और नई चेतना के साथ जीवन को शुरू करने का दिन है। रोजा अगर ठहराव है, तो ईद उससे सकारात्मक शक्ति ग्रहण कर आगे की तरफ बढ़ना है। ईद-उल-फ़ित्र का नाम ‘फ़ित्रा’ शब्द से लिया गया है। फ़ित्रा, ईद की नमाज पढ़ने से पहले जरूरतमंदों को दान में दी जाने वाली अनिवार्य राशि है। ईद की नमाज अदा करने से पहले हर परिवार के मुखिया को एक तय राशि देनी अनिवार्य होती है। नमाज की दो रकात के अतिरिक्त ईद-उल-फित्र के लिए और कोई निर्धारित अनुष्ठान नहीं है।
यह याद रखना आवश्यक है कि ईद की नमाज भले ही घर पर अदा की जाए, किंतु फ़ित्रा अनिवार्य है।

ईंद के दिन घर में लजीज पकवान बनाते हैं और ईदी देते हैं। इस दिन मस्जिद में सामूहिक रूप से नमाज पढ़ते हैं, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण यह संभव नहीं होगा। कई इस्लामिक विद्वानों और संगठनों ने ईद की नमाज लोगों को घर पर ही अदा करने और सरकारी निर्देशों का पालन करने की सलाह दी है। ईद की नमाज सुबह सूर्योदय के पश्चात किसी भी समय अदा की जा सकती है। घर में नमाज अकेले या स्वजन के साथ पढ़ी जा सकती है। इसका उदाहरण हजरत मुहम्मद साहब के करीबी साथी अनस इब्न मलिक के जीवन से भी मिलता है। एक बार वे ईद की सामूहिक नमाज अदा नहीं कर पाए तो उन्होंने अपने घर के लोगों के साथ घर पर नमाज अदा की। इस समय हमारा देश एक चुनौतीपूर्ण समय से गुजर रहा है, ऐसे में फ़ित्रा के रूप में जो भी योगदान संभव हो, करें। जुरूरतमंदों की मदद करें। अनावश्यक घर से न निकलें, लोगों को घर आमंत्रित न करें, न किसी के यहां जाएं। मस्जिदों या बाजारों में भीड़ न लगाएं। ईद उल-फ़ित्र रमजान में प्राप्त संयम की शक्ति के परीक्षण का समय है।