भारतीय संस्कृति में रची-बसी है धार्मिक स्वतंत्रता

दैनिक जागरण, नई दिल्‍ली, 18, December, 2019

अमेरिका में धार्मिक स्वतंत्रता पर आयोजित दूसरे मंत्रिस्तरीव सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधि ने देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को मजबूती के साथ रखा | प्रतिनिधि ने कह्य कि हज़ारों वर्षों से धार्मिक स्वतंत्रता भारत की संस्कृति में रची-बसी है। यह बयान देश के उन लोगों के गाल पर कराया तमाचा है जो संकुचित सियासी फ़ायदे के लिए देश में असहिष्णुता और सांप्रदायिक भेदभाव के मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं।

अमेरिका के विदेश विभाग में आयोजित समारेह में हिस्सा ले रहे भारत के जाने-माने लेखक रामिश सिद्दीकी ने कहा कि भारत निर्विवाद रूप से धार्मिक स्वतंत्रता का पालन-पोषण करने वाला देश हैं। अमरीका  के विदेश मंत्री पोंपीयो ने अपने उद्घाटन भाषण में कह, “दुनिया के प्रत्येक स्थान के सभी लोगों को अपने घरों में, अपने पूजा स्थलों में, खुले तौर पर अपने धर्म को मानने और जिसमें वह विश्वास रखते हैं उसमें भरोसा रखने की आजादी होनी चाहिए। धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर अमरीका की प्रतिबद्धता कभी खत्म नहीं होगी, हम इस लड़ाई के प्रत्येक चरण में आपके साथ हैं।’

‘धार्मिक स्वतंत्रता सभी मानवाधिकारों का लिटमस टेस्ट है।’

वहीं अमरीका के अंतर्रष्ट्रिय धार्मिक स्वतंत्रता मामलों के विशेष राजदूत सैम ब्राउनवैक ने कह कि दुनिया की 80 फीसद आबादी धार्मिक बंदिशों वाले परिवेश में रह रही है। उन्होंने कहा कि धार्मिक बंदिशों को खत्म करने का समय आ गया है।

अमरीकी संसद के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने सम्मेलन के पहले दिन के सत्र के समापन भाषण में चीन सरकार द्वारा उइगर मुस्लिमों के उत्पीड़न की कड़े शब्दों में निंदा की। उन्होंने कहा, ‘कैसे कोई दूसरों को अपने धर्म का पालन करने से रोक सकता है? यह वही कर सकता है जिसकी कोई आस्था नहीं हो।’ धार्मिक स्वतंत्रता पर यूरोपी संघ के राजदूत जैन फिगल ने कह, ‘धार्मिक स्वतंत्रता सभी मानवाधिकारों का लिटमस टेस्ट है।’

इस सम्मेलन में दुनिया भर के 409 प्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के धार्मिक स्वतंत्रता मामलों के प्रतिनिधि, यूरोपी संघ के धार्मिक स्वतंत्रता मामलों के राजदूत, मंत्री, सिविल सोसाइटी संगठन, धार्मिक नेता और अधिकारी शामिल हैं।