दक्षिण एशिया से निकलेगी मुस्लिम समाज में सुधार की राह

Dainik Jagran – News Bureau, New Delhi – 19, December, 2019

मुस्लिम समाज में सुधार की राह दक्षिण एशिया से निकलेगी और इसमें भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह बात “फोरम फॉर प्रमोटिंग पीस इन मुस्लिम सोसाइटीज’ की छठी वार्षिक सभा में कही गई। वक्‍ताओं ने भारत की भ्रूमिका को महत्वपूर्ण करार दिया और कहा कि दक्षिण एशिया में नई दिल्‍ली इस कार्य का नेतृत्व भी कर सकता है। साथ ही पश्चिमी देशों के बजाय पूर्व की ओर देखने की बात कही गई।

बीते दिनों संयुक्त अरब अमीरात (यूएई ) की राजधानी अबू धाबी में आयोजित इस सम्मेलन में मुस्लिम समाज के बच्चों को दी जा रही शिक्षा, उसमें बदलाव, सुधार, देशों में पारस्पस्कि सहयोग बढ़ाने जैसे विषयों पर चर्चा भी की गई। इस सभा में ‘न्यू अलायंस ऑफ वर्च्यु’ चार्टर जारी किया गया। भारत की ओर से इस सभा में शामिल हुए इस्लाम के जानकार और चिंतक रामिश सिद्दीकी ने इस अवसर पर कहा, “दक्षिण एशिया दुनिया में सबसे घनी आबादी वाला क्षेत्र है। इसमें लगभग एक चौथाई आबादी रहती है। उनमें से अधिकांश भारत में रहते हैं। इसी कारण से दक्षिण एशिया में चार्टर को आगे बढ़ाने के लिए सबसे पहले भारत सरकार के साथ जुड़ना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह इस क्षेत्र का सबसे बड़ा हितधारक है।’उन्होंने कहा कि भारत का सहयोग मिलने से हम ना सिर्फ दक्षिण एशिया में बल्कि विश्वभर में इस चार्टर का प्रचार करने में सफल हो पाएंगे।’

आयोजन

अवूधावी में आयोजित सम्मेलन में वक्‍ताओं ने कहा, पश्चिम की जगह पूर्व की ओर देखने की जरूरत

चार्टर में मुस्लिम समाज के बच्चों की वर्तमान शिक्षा पद्धति की भी बात की गई। कहा गया कि वर्तमान में मुस्लिम बच्चों को जो पाठ्यक्रम पढ़ाया जा रहा है उसका आधुनिकीकरण बेहद जरूरी है। इसके बिना मुस्लिम समाज की भावी पीढ़ी पीछे छूट जाएगी और समाज इतना बड़ा जोखिम नहीं उठा सकता कि उसकी पीढ़ी दुनिया में पिछड़ जाए।

फोरम के अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला बिन बय्याह ने सभा में कहा, ‘कोई भी राष्ट्र अकेले नहीं रह सकता। सह-अस्तित्व और सहयोग एक दूसरे के पूरक हैं। हमें सहयोग और अच्छाई को बढ़ाने की जरूरत है।’ बता दें कि शेख अब्दुल्ला बिन बय्याह यूएई की फतवा काउंसिल के भी अध्यक्ष हैं। सभा में नाइजीरिया के उपराष्ट्रपति यमी ओसिनबाजो ने कहा कि हमारा टकराव मुस्लिम और ईसाई के बीच नहीं है, बल्कि उन लोगों के बीच है जो सहिष्णु हैं और जो असहिष्णु हैं। अपने देश का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, ‘नाइजीरिया में जिन धर्मस्थलों को आतंकियों ने नष्ट कर दिया था, उन्हें बनाने में ईसाई समाज के लोग आगे आए और हमारी मदद की।’ सम्मेलन में 80 से अधिक देशों के 500 से अधिक धार्मिक नेताओं, विद्वानों व सस्कारी प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। भारत की तरफ से जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी भी शामिल हुए।