शांति और विकास की संधि

मानव जाति के इतिहास में अनेकों शांति संधियाँ हुई, चाहे वे तीन हज़ार साल पुरानी, इतिहास की सबसे पहली दर्ज शांति संधि- ‘कदेश संधि’ हो, या फिर नपोलियन बोनपार्ट की मशहूर पेरिस संधि, या वरसाईल संधि जिसके बाद प्रथम विश्व युद्ध का अंत हुआ था। इन एतिहासिक संधियों की सूची में एक नया नाम जुड़ गया है इसराएल की संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन के साथ हुई शांति संधि। जिसका नाम ‘अब्राहम अकॉर्ड’ रखा गया है। इस संधि के साथ संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन फ़ारस खाड़ी के और इस्लामिक जगत के दो ऐसे देश बन गए हैं जिन्होंने इसराएल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित कर लिए हैं। ‘अब्राहम अकॉर्ड’ के तहत इन देशों में एक दूसरे के दूतावास खोले जाएँगे साथ ही लोगों के बीच कारोबार, शिक्षा, स्वास्थ्य, विज्ञान, प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाएगा। इस संधि का नाम ‘अब्राहम अकॉर्ड’ रखने का कारण है, पैग़म्बर इब्राहीम या अब्राहम जिन्हें ईसाई, यहूदी और इस्लाम में बहुत बड़ा दर्जा हासिल है। इन तीनों धर्मों को जोड़ने वाली कड़ी पैग़म्बर इब्राहीम हैं। ईसाई, यहूदी और इस्लाम धर्म में इब्राहीम को ख़ुदा का पैग़म्बर बताया गया है। इन्हें इन धर्मों में प्रधान के दर्जे में रखा जाता है, यही कारण है के इन धर्मों को अब्रहमिक धर्म भी कहा जाता है। इस संधि के बाद संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन में रह रहे मुस्सलमान आसानी से यरूशलेम का सफ़र कर पाएँगे और उन जगहों पर जा पाएँगे जिनकी इस्लाम में विशेष मान्यता है, जिनमें मुख्यतः अल- अक्सा मस्जिद है। जो इस्लाम के तीन सबसे पवित्र स्थलों में से एक है।

15 सितंबर 2020 को अमरीका की राजधानी वाशिंगटन में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की उपस्थिति में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। 1948 में इज़राइल के जन्म के बाद दो समान समझौते हुए, जो अरब दुनिया और इज़राइल के बीच स्थिति में सामंजस्य स्थापित करने के लिए किए गए थे। इनमें एक 1979 में मिस्र के साथ और दूसरा 1994 में जॉर्डन के साथ समझौता हुआ था, लेकिन वे ज़्यादा सफल ना हो पाए और उसका बड़ा कारण हम समझते हैं, शांति की अहमियत को कम आंकना। अक्सर हम लोगों को कहते सुनते हैं की पहले न्याय फिर शांति, लेकिन ऐसे लोग यह समझने में विफल हो जाते हैं की अमन के बाद ही विकास और न्याय के अवसर खुलते हैं। इसका बड़ा उधारण जापान है। जापान दुनिया का एकमात्र देश है जिसने परमाणु बमों से मची तबाही का सामना किया। इतनी तबाही के बाद सकरात्मकता की रस्सी को दृढता से थामना कोई आम बात नहीं थी। युद्ध के बाद हुई संधियों में उन्होंने कोई बड़ी शर्त नहीं रखी और उसका फ़ायदा यह हुआ के उन्होंने अपने सम्पूर्ण सामर्थ्य को अपने देश के विकास में लगा दिया। आज मात्र 75 वर्षों में वे दुनिया के सबसे विकसित राष्ट्रों में से एक बन चुका है।

दो देशों के बीच होने वाली शांति संधि वह व्यवस्था कायम करती है, जो उन देशों के नागरिकों के लिए विकास और न्याय के अवसर प्रदान करती है। ऐसी ही संधि सूत्र में बंधने का प्रयास है हाल ही में हुई ‘अब्राहम अकॉर्ड’

अरब उपद्वीप के देशों और इसराएल के बीच हज़ारों वर्ष का इतिहास, धार्मिक आस्था, संस्कृति, भाषा जैसे कई तार हैं जो उन्हें एक-दूसरे से जोड़ते हैं, लेकिन फिर भी कई दशकों से चल रही लड़ाई ने आज दोनो तरफ़ के लोगों में इतना फ़ासला ला दिया की आज वहाँ की युवा पीढ़ी में बहुत कम ऐसे लोग हैं जिन्होंने एक-दूसरे के देशों का सफ़र किया हो। एक-दूसरे के बीच किसी तरह का संपर्क ना होने के कारण वे एक रूढ़िवादी सोच का भी शिकार हुए। ये संधि इस एतिहासिक कमी को भी दुरुस्त करने का कार्य करेगी। मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जिसका अपना विकास किसी दूसरे मनुष्य की सहायता के बिना हो पाना असंभव है। मानव इतिहास में जब-जब सभ्यताएँ संपर्क में आईं, उसका सकतरात्मक प्रभाव दोनो तरफ़ पड़ा। हम समझते हैं की ‘अब्राहम अकॉर्ड’ का बड़ा लाभ भी दोनो तरफ़ के लोगों को  पहुँचेगा। किसी भी वर्ग से जुड़े लाखों लोगों के लिए अवसरों के दरवाज़े खुलेंगे।आज से कुछ समय पहले तक इन देशों के लोगों के लिए यह सोच पाना असंभव था की इसराएल के शिक्षा संस्थानों में अरब खाड़ी के देशों के बच्चे पढ़ें या इसराएल के नागरिक नौकरी या व्यवसाय के लिए अरब खाड़ी के देशों में आएँ, लेकिन इस संधि ने यह सब अवसर खोल दिए हैं। इस संधि का तुरंत प्रभाव कोरोनवायरस महामारी के विर्रूध चल रही लड़ाई में भी देखने को मिला। संयुक्त अरब अमीरात और इसराएल ने अपने देशों के बड़े स्वास्थ्य संस्थानों को बिना समय गवाय एक दूसरे के साथ कोविड-19 पर चल रहे शोध व विकास कार्यों पर साथ काम करने की भी मंज़ूरी दे दी है।

देश में जब शांति का माहौल होता है तो उसका लाभ वहाँ के छोटे-बड़े प्रत्येक वर्ग को पहुँचता है। ऐसे कई देश हैं जिन्होंने शांति व्यवस्था को प्राथमिकता दी और अभूतपूर्व तरक्की हासिल की, चाहे जर्मनी हो या दक्षिण कोरिया या सिंगापुर, ये सभी देश आधुनिक जमाने की कामयाब मिसालें हैं। मध्य-पूर्व कई नाटकीय बदलावों से गुजरा है, अनेक संघर्षों का साक्षी रहा है, हम उमीद करते हैं की इस समझौते से न सिर्फ़ मध्य-पूर्व में एक बड़ा बदलाव आएगा, बल्कि विश्व के अन्य हिस्सों में भी ऐसी शुरुआत होगी।