धर्म के नाम पर हिंसा का मुद्दा उठा
दैनिक जागरण, नई दिल्ली, 07 December, 2018
मुस्लिम समाज एक गहरे अंधकार में फंस गया है, जहां बीमार सोच वाले मुट्ठिभर लोगों ने धर्म के नाम पर आतंक को बढ़ावा देने का काम किया है। इसका प्रभाव समस्त मुस्लिम समाज पर पड़ा है। संयुक्त अरब अमीरात (युएई ) की राजधानी अबू धाबी में फोरम फॉर प्रमोटिंग पीस इन मुस्लिम सोसायटी की पांचवीं वार्षिक सभा में यह मुद्दा उठा।
इस साल पांच से सात दिसंबर तक चलने वाली वार्षिक सभा में दुनियाभर से आए विद्वानों ने एक सुर में कहा कि समय कारण खोजने का नहीं, निवारण करने का है। आतंक की शुरुआत पहले एक विचारधारा की शक्ल में होती है और धीरे-धीरे यह हिंसक होता जाता है। धार्मिक विद्वानों की जिम्मेदारी है कि वे ऐसी हिंसक विचारधारा का उत्तर शांति की विचारधारा के रूप में दें। फोरम के उद्घाटन सत्र में अमेरिकी सरकार के एंबेसडर फॉर रिलीजियस फ्रीडम सैम ब्राउमबैक ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को उसका धर्म मानने की आजादी है। फोरम के अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला बिन बय्याह ने मीडिया से आग्रह किया कि वे आपसी प्यार और भाईचारे की खबर को सुर्खियों में जगह दें। शेख अब्दुल्ला ने बताया कि अगले एक साल में कुवैत की सरकार के साथ मिलकर फोरम फॉर पीस दुनियाभर में 100 करोड़ भूखे लोगों तक भोजन पहुंचाने का लक्ष्य लेकर चल रहा है|
धार्मिक विद्वानों की जिम्मेदारी है कि वे ऐसी हिंसक विचारधारा का उत्तर शांति की विचारधारा के रूप में दें।
नोबेल शांति पुरस्कार के तर्ज पर फोरम एक शांति पुरस्कार भी देता है, जिसका नाम इमाम हसन इब्न अली पीस अवार्ड है। यह अवार्ड पहली बार 2005 में भारत् के इस्लामिक विद्वान मौलाना वहीदुद्दीन खान को दिया गया था। इस साल यह अवार्ड एरिट्रिया और इधियोपिया के आपसी संबंधों में आए सुधार को देखते हुए वहां के राष्ट्रपतियों को संयुक्त रूप से दिया गया।