सम्मान और संवाद हैं सर्वांगीण विकास का सूत्र
विचारों में अंतर से ही एक नए विचार का जन्म होता है। यह कभी न रुकने वाली प्रक्रिया ही मानव प्रगति की एकमात्र कुंजी है, लेकिन ऐसा विचार पनपे, इस तरह का संवाद स्थापित हो, इसके लिए अपेक्षित है एक-दूसरे का सम्मान…
हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने एक संगोष्ठी में कहा कि ‘भारत के सर्वांगीण विकास के लिए समाज के सभी लोगों को मिलकर काम करना चाहिए और समृद्ध भारत के लिए सभी का एक साथ आना अनिवार्य है।’ यह बात सत्य है कि एक देश प्रगति के पथ पर तेजी से आगे तब बढ़ता है, जब वहां रहने वाले लोगों का लक्ष्य देश को आगे ले जाना हो। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि, ‘मैं अपने मन की नजरों से देख सकता हूं कि वर्तमान की अराजकता और कलह से महान और अपराजेय भारत उभरेगा, जिसकी बुद्धि होगी वेदांत और शरीर, इस्लाम।’
मानव विकास की कड़ी है संघर्ष
स्वामी विवेकानंद यह बहुत अच्छे से समझते थे कि मतभेद और इससे पैदा हुआ संघर्ष प्रकृति का एक अभिन्न हिस्सा है, लेकिन इसे प्रबंधित करना हम पर निर्भर है। अक्सर लोग संघर्ष को एक कमी समझते हैं। वे समझते हैं कि संघर्ष न हों तो समाज की व्यवस्था सही से चल सकती है, लेकिन सच ये है कि संघर्ष मानव विकास की कड़ी हैं। मानव इतिहास में विभिन्न संस्कृतियों के बीच हमेशा से संघर्ष मौजूद रहा है। फर्क बस इतना है कि आज विज्ञान और आधुनिक तकनीक ने इस संघर्ष की गति को न सिर्फ तेज कर दिया है बल्कि समाज के सामने प्रत्यक्ष ला दिया है।
धार्मिक होने का सही अर्थ
पहले हम बात करते हैं धार्मिक संघर्ष की। धार्मिक विद्वानों ने विश्व के सभी महान धर्मों को दो श्रेणियों में विभाजित किया है- आर्य धर्म और सेमेटिक (यहूदी, इस्लाम व ईसाई)। आर्य और सेमेटिक, दोनो तरफ का अंतर केवल दर्शन का है, मानव मूल्यों का नहीं। सम्मान और सहिष्णुता की भावना सभी पंथों का सार है। सभी पंथों में दूसरों के प्रति सम्मान और सहनशीलता को समान महत्व दिया गया है। धर्म से व्यक्ति में अध्यात्म का विकास होता है, तो फिर जिसने अपनी आध्यात्मिकता को विकसित किया हो, वह किसी के साथ असभ्य कैसे हो सकता है? धार्मिक व्यक्ति का व्यवहार हमेशा दूसरे के विचारों के प्रति सम्मान और सहनशीलता का होता है। धर्म का सही अर्थ समझने वाला व्यक्ति कभी भी किसी के विचार की अवमानना नहीं कर सकता।

धर्म से व्यक्ति में अध्यात्म का विकास होता है तो फिर जिसने अपनी आध्यात्मिकता को विकसित किया हो वह किसी के साथ असभ्य कैसे हो सकता है? धार्मिक व्यक्ति का व्यवहार हमेशा दूसरे के विचारों के प्रति सम्मान और सहनशीलता का होता है।
प्रगति का मार्ग बताती हैं चुनौतियां
अब बात करें सांस्कृतिक संघर्ष की। अनेक लोग इसे भी एक खतरे के रूप में देखते हैं। सांस्कृतिक संघर्ष प्रकृति की एक स्वस्थ प्रक्रिया को दर्शाता है। ब्रिटेन के मशहूर इतिहासकार आर्नल्ड टोयनबी ने कहा था कि, ‘चुनौतियां किसी भी राष्ट्र को आगे ले जाने के लिए एक प्रेरणास्रोत के रूप में कार्य करती हैं।’ यह बात सांस्कृतिक संघर्ष पर भी लागू होती है। वास्तव में चुनौतियां ही मानव इतिहास की चल रही प्रगतिशील यात्रा की एकमात्र सीढ़ी हैं। हम जब इतिहास पर नजर डालते हैं तो पाते हैं कि रोमन और गैर-रोमन संस्कृति का जब संघर्ष हुआ तो इसके परिणामस्वरूप मुस्लिम राष्ट्रों का उदय हुआ, जिन्होंने इतिहास को आगे बढ़ाया।
बाद में मुस्लिम और गैर-मुस्लिम संस्कृति के संघर्ष ने यूरोप में पुनर्जागरण को जन्म दिया जिससे इतिहास और आगे बढ़ा। बीसवीं सदी में यूरोपीय और गैर-यूरोपीय संस्कृतियों को चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप अमेरिका इतिहास के सबसे बड़े प्रगतिशील देश की शक्ल में उभरा।
आज हम देख रहे हैं कि अब अमेरिकी और गैर-अमेरिकी संस्कृति के बीच संघर्ष हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप दुनिया को एक बेहतर और अधिक उन्नत संस्कृति मिलेगी और यह बहुत संभव है कि यह भारतीय या एशियाई संस्कृति का पुन: उदय हो सकता है।
सभी पंथ सिखाते शांति का पाठ
शांति मानवता का आधार है, शांति की आवश्यकता समाज में तब होती है, जब वहां कई प्रकार के विचारों का मिलन होता है। शांतिपूर्ण व्यक्ति से ही एक सफल समाज की रचना संभव है। यह मतभेदों की दुनिया है और ये मतभेद कभी पूर्णत: समाप्त नहीं हो सकते। प्रत्येक व्यक्ति को इनके बीच ही जीना है, इसी कारण प्रकृति ने मनुष्य के व्यक्तित्व में अंतर और विविधता को समायोजित करने वाली क्षमता के साथ उसे पैदा किया है।
स्वामी विवेकानंद ने जीवन का एक सरल सूत्र दिया था, ‘अनुसरण चाहे एक का करो, किंतु किसी से भी नफरत मत करो।’ बाइबल में भी हम ऐसे ही विचार पाते हैं, ‘अपने दुश्मन से भी प्यार करो।’ इसका अर्थ है कि दुश्मनी को प्यार से समाप्त करो। इसी तरह कुरान में भी कहा गया है, ‘एक अच्छा काम और एक बुरा काम कभी एक जैसे नहीं होते हैं। बुरे काम के बदले में अच्छा काम करो और तुम देखोगे कि तुम्हारा दुश्मन तुम्हारा सबसे अच्छा दोस्त बन गया है।’ यही हर धार्मिक शिक्षाओं का सार है।
साक्षरता से तैयार होंगे अग्रणी
आज विश्वभर में ऐसी कई संस्थाएं हैं, जो बाहरी संस्कृति से खतरा महसूस करती हैं और इसके विरोध में अपना समय और ऊर्जा दोनों लगाती हैं। इसमें समय लगाने से ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य है अपने समाज के लोगों को शिक्षित करना। हर किसी को अपनी ऊर्जा और समय को इस ओर लगाने का हरसंभव प्रयास करना चाहिए। समाज को जागरूक, प्रबुद्ध बनाने के लिए उनके बीच साक्षरता का प्रतिशत बढ़ना अनिवार्य है। जिस दिन हम उन्हें एक प्रबुद्ध व्यक्ति बनाने में कामयाब हो पाएंगे, तब यह भी संभव हो पाएगा कि जो लोग आज पिछड़ते नजर आते हैं, वे कल एक नए सांस्कृतिक युग के अग्रणी बन जाएं।